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इक राज़-ए-दिलरुबा को बयाँ होना है अभी | शाही शायरी
ek raaz-e-dilruba ko bayan hona hai abhi

ग़ज़ल

इक राज़-ए-दिलरुबा को बयाँ होना है अभी

सत्तार सय्यद

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इक राज़-ए-दिलरुबा को बयाँ होना है अभी
हर्फ़-ओ-सदा को शोला-ब-जाँ होना है अभी

जागी है दिल में शहद-ए-शहादत की आरज़ू
राह-ए-वफ़ा का संग-ए-निशाँ होना है अभी

रोका हुआ है तुम ने हवाओं को किस लिए
इस राख में शरर का गुमाँ होना है अभी

साँसें शबों की जाँ की तनाबें उखड़ गईं
अगले सफ़र पे हम को रवाँ होना है अभी

महसूर है वो किब्र-ओ-अना के हिसार में
उस से तआरुफ़ अपना कहाँ होना है अभी

ताबीर की तलाश में फिरते हैं ख़्वाब ख़्वाब
चश्म-ए-जहाँ पे अक्स-फ़शाँ होना है अभी