इक क़यामत वक़्त से पहले बपा होने को है
ऐ ख़ुदाए मेहरबाँ अब और क्या होने को है
मौसम-ए-गुल में ख़िज़ाँ साया-फ़गन है किस लिए
दरपय आज़ार क्या बाद-ए-सबा होने को है
जिस्म-ओ-जाँ में क़ुर्बतों की इंतिहा हो जाए गर
जान लें फिर दूरियों की इब्तिदा होने को है
छोड़ दी मैं ने मताअ-ए-ख़्वाब दुनिया के लिए
हश्र इक तक़्सीम पर उस की बपा होने को है
दिल धड़कता है यूँही अंदेशा-ए-फ़र्दा है क्यूँ
ऐसा लगता है कि कोई हादिसा होने को है
जल चुका मेरा नशेमन देखना ये है कि अब
आग फैलेगी कहाँ पर और क्या होने को है
चाँद-तारों का सफ़र 'राही' करेंगे एक दिन
कायनात-ए-बेकराँ अब ज़ेर-ए-पा होने को है
ग़ज़ल
इक क़यामत वक़्त से पहले बपा होने को है
सय्यद नवाब हैदर नक़वी राही