इक परेशानी अलग थी और पशेमानी अलग
उम्र भर करते रहे हम दूध और पानी अलग
रेत ही दोनों जगह थी ज़ेर-ए-मेहर-ओ-ज़ेर-ए-आब
मिस्रा-ए-ऊला से कब था मिस्रा-ए-सानी अलग
दश्त में पहले ही रौशन थी बबूलों पर बहार
दे रहे हैं शहर में काँटों को सब पानी अलग
कुछ कुमक चाही तो ज़म्बील-ए-हवा ख़ाली मिली
घाटियों में खो गया नक़्श-ए-सुलैमानी अलग
रेत समझौते की ख़ातिर नाचती है धूप में
बादलों की ज़िद जुदा है मेरी मन-मानी अलग
मुद्दई हैं बर्फ़ बालू रात काँटे तप हवा
जिस्म पर है फ़ौजदारी जाँ पे दीवानी अलग
वो फ़लक संगीत में मिट्टी की धुन तो क्या हुआ
सारेगामा से कहीं होता है पाधानी अलग
फ़न में ताक़त-वर बहाव चश्म-ए-दो-आबा का है
'ज़ेब-ग़ौरी' से कहाँ 'तफ़ज़ील' हैं 'बानी' अलग
ग़ज़ल
इक परेशानी अलग थी और पशेमानी अलग
तफ़ज़ील अहमद