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इक नज़र में दर्द खो देना दिल-ए-बीमार का | शाही शायरी
ek nazar mein dard kho dena dil-e-bimar ka

ग़ज़ल

इक नज़र में दर्द खो देना दिल-ए-बीमार का

अहसन मारहरवी

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इक नज़र में दर्द खो देना दिल-ए-बीमार का
ये तो अदना सा करिश्मा है निगाह-ए-यार का

ग़ैर मुमकिन है कि हो पामाल कोई हश्र में
हो न जब तक कुछ इशारा आप की रफ़्तार का

हज़रत-ए-आदम से ता ईं दम हुए सब इश्क़ दोस्त
है अज़ल से दौर दौरा हुस्न की सरकार का

हम जो मर कर जी उठे इस पर तअज्जुब क्या कि है
वो करामत चाल की ये मोजज़ा गुफ़्तार का

आप के ग़म्ज़े उठाऊँ ग़ैर के ताने सुनूँ
बंदा परवर मैं ने छोड़ा इश्क़ भी सरकार का

आबलों को सर उठाने की ज़रा मोहलत नहीं
है करम सहरा-नवर्दी में ये नोक-ए-ख़ार का

इस से बढ़ कर आप 'अहसन' चाहते हैं और क्या
दोस्तों की दाद है गोया सिला अशआर का