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इक नशा सा ज़ेहन पर छाने लगा | शाही शायरी
ek nasha sa zehn par chhane laga

ग़ज़ल

इक नशा सा ज़ेहन पर छाने लगा

रमेश कँवल

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इक नशा सा ज़ेहन पर छाने लगा
आप का चेहरा मुझे भाने लगा

चाँदनी बिस्तर पे इतराने लगी
चाँद बाँहों में नज़र आने लगा

रूह पर मदहोशियां छाने लगीं
जिस्म ग़ज़लें वस्ल की गाने लगा

तुम करम-फ़रमा हुए सद-शुक्रिया
ख़्वाब मेरा मुझ को याद आने लगा

रफ़्ता रफ़्ता यासमीं खिलने लगी
मौसम-ए-गुल इश्क़ फ़रमाने लगा

ज़ुल्फ़ की ख़ुशबू शगुफ़्ता लब 'कँवल'
मंज़र-ए-पुर-कैफ़ दिखलाने लगा