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इक महक सी दम-ए-तहरीर कहाँ से आई | शाही शायरी
ek mahak si dam-e-tahrir kahan se aai

ग़ज़ल

इक महक सी दम-ए-तहरीर कहाँ से आई

शानुल हक़ हक़्क़ी

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इक महक सी दम-ए-तहरीर कहाँ से आई
नाम में तेरे ये तासीर कहाँ से आई

पहलू-ए-साज़ से इक मौज-ए-हवा गुज़री थी
ये छनकती हुई ज़ंजीर कहाँ से आई

दम हमारा तो रहा हल्क़ा-ए-लब ही में असीर
बू-ए-गुल ये तिरी तक़दीर कहाँ से आई

अहल-ए-हिम्मत के मिटाने से तो फ़ारिग़ हो ले
दहर को फ़ुर्सत-ए-तामीर कहाँ से आई

गो तरसता है अभी तक तिरी तहरीर को दिल
फिर भी जाने तिरी तस्वीर कहाँ से आई

यूँही हो जाता है क़िस्मत से कोई ग़म बेदार
इश्क़ के हाथ में तदबीर कहाँ से आई

किस तरफ़ जाते हैं यारो ये बिगड़ते हुए नक़्श
ये सँवरती हुई तस्वीर कहाँ से आई

लहन-ए-बुलबुल का चला कौन से गुल पर अफ़्सूँ
सिर्फ़ इक तर्ज़ है तासीर कहाँ से आई

पड़ गया सोज़-ए-सुख़न हाथ हमारे क्यूँकर
ख़ाक होने को ये इक्सीर कहाँ से आई