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इक ख़्वाब छन से टूट के आँखों में गड़ गया | शाही शायरी
ek KHwab chhan se TuT ke aankhon mein gaD gaya

ग़ज़ल

इक ख़्वाब छन से टूट के आँखों में गड़ गया

मनीश शुक्ला

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इक ख़्वाब छन से टूट के आँखों में गड़ गया
इतना हँसे कि चीख़ के रोना भी पड़ गया

ये किस ने अपनी टीस वरक़ पर उतार दी
ये कौन अपने दिल को सियाही से जड़ गया

अब तो ख़याल-ए-यार से होता है ख़ौफ़ सा
चेहरा किसी की याद का कितना बिगड़ गया

लहरों का शोर थम गया तूफ़ान सो गए
कश्ती के डूबते ही समुंदर उजड़ गया

जब तक हमारे नाम से वाक़िफ़ हुआ जहाँ
तब तक हमारे नाम का पत्थर उखड़ गया

कर तो लिया है दर्द की लहरों का सामना
लेकिन हमारे ज़र्फ़ का बख़िया उधड़ गया

उस को ठहर के देखते हसरत ही रह गई
वो दफ़अ'तन मिला था अचानक बिछड़ गया