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इक झलक तेरी जो पाई होगी | शाही शायरी
ek jhalak teri jo pai hogi

ग़ज़ल

इक झलक तेरी जो पाई होगी

अंजुम लुधियानवी

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इक झलक तेरी जो पाई होगी
चाँद ने ईद मनाई होगी

सुब्ह दम उस को रुला आया हूँ
सारा दिन ख़ुद से लड़ाई होगी

उस ने दरिया को लगा कर ठोकर
प्यास की उम्र बढ़ाई होगी

केस जुगनू पे चलेगा 'अंजुम'
बस्ती औरों ने जलाई होगी