इक जफ़ा-जू से मोहब्बत हो गई
हाए ये कैसी हिमाक़त हो गई
हो गया जिस पर मसीहा मेहरबाँ
बंद उस के दिल की हरकत हो गई
आ गई उन की जवानी आ गई
हो गई बरपा क़यामत हो गई
ये तसव्वुर की करिश्मा-साज़ियाँ
देखा जिस शय को वो औरत हो गई
लीजे वो उट्ठी निगाह-ए-इल्तिफ़ात
लीजे तकमील-ए-हिमाक़त हो गई
जब निगाह-ए-नाज़ कमसिन की उठी
नन्ही-मुन्नी इक क़यामत हो गई
जब हुए वो माइल-ए-अहद-ए-वफ़ा
बढ़ के माने उन की लुक्नत हो गई
क्या करे बेचारी दुज़दीदा निगाह
चोरी करना उस की फ़ितरत हो गई
ये इनायात-ए-मुसलसल अल-अमाँ
दुगुनी और तिगुनी मुसीबत हो गई
मुँह लगी उम्माल-ए-अहद-ए-नौ के भी
किसी क़दर गुस्ताख़ रिश्वत हो गई
मैं ने यूँ दिल को बनाया आईना
आईना-गर को भी हैरत हो गई
लाख ज़ालिम ने छुपाए अपने ऐब
'शौक़' उस की फिर भी शोहरत हो गई
ग़ज़ल
इक जफ़ा-जू से मोहब्बत हो गई
शौक़ बहराइची