EN اردو
इक इक को इताब बाँटते हो | शाही शायरी
ek ik ko itab banTte ho

ग़ज़ल

इक इक को इताब बाँटते हो

परवीन फ़ना सय्यद

;

इक इक को इताब बाँटते हो
किस तरह के ख़्वाब बाँटते हो

हर चेहरे पे झुर्रियाँ लिखी हैं
तुम कैसा शबाब बाँटते हो

फ़िरदौस तुम्हारे हाथ में है
बंदों को अज़ाब बाँटते हो

इक एक कली का रंग फ़क़ है
ये कैसे गुलाब बाँटते हो

आँखों में तो रतजगे लिखे हैं
तुम समझे कि ख़्वाब बाँटते हो