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इक हूक सी जब दिल में उट्ठी जज़्बात हमारे आ पहुँचे | शाही शायरी
ek huk si jab dil mein uTThi jazbaat hamare aa pahunche

ग़ज़ल

इक हूक सी जब दिल में उट्ठी जज़्बात हमारे आ पहुँचे

बीएस जैन जौहर

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इक हूक सी जब दिल में उट्ठी जज़्बात हमारे आ पहुँचे
अल्फ़ाज़ जो ज़ेहन में मौज़ूँ थे होंटों के किनारे आ पहुँचे

हालात ग़म-ए-दिल कह न सके और दर्द-ए-दरूँ भी सह न सके
आँसू जो हिसार-ए-चश्म में थे पलकों के सहारे आ पहुँचे

मझंदार में थे और डर ये था कि डूब ही जाएँगे अब हम
मौजों में जो लहराई कश्ती तिनकों के सहारे आ पहुँचे

हम जोश-ए-जवानी में आ कर इक ला-महदूद सफ़र में थे
मालूम हुआ मंज़िल ये न थी जब घाट किनारे आ पहुँचे

इक उम्र गुज़ारी थी हम ने मज़लूमों की ही हिमायत में
जब गोशा-नशीनी की ठानी फिर ज़ुल्म के मारे आ पहुँचे

बचपन में बहुत दुख होता था मज़लूम की आह-ओ-ज़ारी पर
होते ही जवाँ बहलाने को दुनिया के नज़ारे आ पहुँचे

दुनिया के हवादिस ने इतना पामाल किया हम को 'जौहर'
बचने की कोई उम्मीद न थी क़िस्मत के सितारे आ पहुँचे