इक हवा उट्ठेगी सारे बाल-ओ-पर ले जाएगी
ये नई रुत अब के सब कुछ लूट कर ले जाएगी
एक ख़दशा पहले दरवाज़े से अपने साथ है
रास्तों की दिलकशी ख़ू-ए-सफ़र ले जाएगी
एक चौराहे पे ला कर छुप गया है आफ़्ताब
कोई आवारा करन अब दर-ब-दर ले जाएगी
इक तवक़्क़ो ले के टकराया हूँ हर रहरव के साथ
कोई झुँझलाई हुई ठोकर तो घर ले जाएगी
दिल के काले ग़ार में साँसों के पत्थर जब गिरे
एक साअ'त की चमक सदियों के डर ले जाएगी
फ़िक्र को 'सज्जाद' पहनाए पसंदीदा लिबास
ये नहीं सोचा कि वो गहरा असर ले जाएगी

ग़ज़ल
इक हवा उट्ठेगी सारे बाल-ओ-पर ले जाएगी
सज्जाद बाबर