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इक हरे ख़त में कोई बात पुरानी पढ़ना | शाही शायरी
ek hare KHat mein koi baat purani paDhna

ग़ज़ल

इक हरे ख़त में कोई बात पुरानी पढ़ना

दिनेश नायडू

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इक हरे ख़त में कोई बात पुरानी पढ़ना
कितना मुश्किल है किसी आँख का पानी पढ़ना

कुछ न कुछ सोचना बस सोचना यूँ ही दिन भर
और फिर रात में परियों की कहानी पढ़ना

एक ही चेहरे की बौछार है क़िस्सा अपना
मेरी आँखों से इसे दुश्मन-ए-जानी पढ़ना

कूद जाना तिरी यादों के समुंदर में फिर
डूबते डूबते मौजों की रवानी पढ़ना

आख़री बार मुझे देखना जाते जाते
सूखी आँखों से मिरा सैल-ए-मआ'नी पढ़ना

मैं ने इक दौर का सावन है किया नज़्म यहाँ
तू कभी आ के मिरी आँखों का पानी पढ़ना