इक हरे ख़त में कोई बात पुरानी पढ़ना
कितना मुश्किल है किसी आँख का पानी पढ़ना
कुछ न कुछ सोचना बस सोचना यूँ ही दिन भर
और फिर रात में परियों की कहानी पढ़ना
एक ही चेहरे की बौछार है क़िस्सा अपना
मेरी आँखों से इसे दुश्मन-ए-जानी पढ़ना
कूद जाना तिरी यादों के समुंदर में फिर
डूबते डूबते मौजों की रवानी पढ़ना
आख़री बार मुझे देखना जाते जाते
सूखी आँखों से मिरा सैल-ए-मआ'नी पढ़ना
मैं ने इक दौर का सावन है किया नज़्म यहाँ
तू कभी आ के मिरी आँखों का पानी पढ़ना
ग़ज़ल
इक हरे ख़त में कोई बात पुरानी पढ़ना
दिनेश नायडू