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इक हरा जज़ीरा भी पानियों से आगे है | शाही शायरी
ek hara jazira bhi paniyon se aage hai

ग़ज़ल

इक हरा जज़ीरा भी पानियों से आगे है

क़य्यूम ताहिर

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इक हरा जज़ीरा भी पानियों से आगे है
उस की दीद की साअत रत-जगों से आगे है

कौन से मनाज़िर में उस को ढूँडने निकलें
वो गुमान से हट कर हैरतों से आगे है

बादबान की आँखें ख़्वाब कौन सा देखें
कौन इक किनारा सा साहिलों से आगे है

अक्स झिलमिलाते हैं एक सब्ज़ क़र्ये के
जो जले दरख़्तों के जंगलों से आगे है

नाम किया लिखें उस का सब हुरूफ़ उस के हैं
क्या उसे तराशें वो ख़्वाहिशों से आगे है

कौन सी ख़लाओं में किस उफ़ुक़ को जाते हो
जो क़दम उठाते हो मंज़िलों से आगे है