इक घना सा शजर मिरे बाज़ू
हर परिंदे का घर मिरे बाज़ू
तेरी आँखों ने बारहा रक्खे
अपनी मीज़ान पर मिरे बाज़ू
'मीर' असर मुझ से लेने आए थे
ले गए काट कर मिरे बाज़ू
पीठ पर वार कर गया सैलाब
रह गए बे-ख़बर मिरे बाज़ू
ले लिए पाँव मेरे बेटे ने
हो गए मो'तबर मिरे बाज़ू

ग़ज़ल
इक घना सा शजर मिरे बाज़ू
रशीद इमकान