इक दिखावा रह गया बस दिल से वो चाहत गई
क़ैस सहरा में गया तो ग़ैरत-ए-वहशत गई
एक हालत थी मिरी और एक हालत दिल की थी
मेरी हालत तो वही है दिल की वो हालत गई
चाँद ने दिल की ख़लिश को चाँदनी की शक्ल दी
हाए मेरी बे-दिली से कैसी शय ग़ारत गई
महमिल-ए-लैला के पीछे गर्द थी और क़ैस था
इस सराब-ए-आरज़ू में हिज्र की इज़्ज़त गई
एक काँटे की खटक से दिल मिरा आबाद था
वो गया तो दिल से मेरे दर्द की राहत गई
बस बुरी निय्यत के फल का इक कसीला ज़ाइक़ा
इश्क़ गोया रिज़्क़ था निय्यत गई बरकत गई
ग़ज़ल
इक दिखावा रह गया बस दिल से वो चाहत गई
बिलाल अहमद