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इक छेड़ थी जफ़ाओं का तेरी गिला न था | शाही शायरी
ek chheD thi jafaon ka teri gila na tha

ग़ज़ल

इक छेड़ थी जफ़ाओं का तेरी गिला न था

गोपाल मित्तल

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इक छेड़ थी जफ़ाओं का तेरी गिला न था
तर्क-ए-तअल्लुक़ात मिरा मुद्दआ' न था

नासेह वो शोख़ दुश्मन-ए-ईमाँ था वाक़ई
और फिर मिरा मिज़ाज भी कुछ आशिक़ाना था

टूटा है अपने ज़ोम-ए-वफ़ा का तिलिस्म आज
महसूस हो रहा है कि तू बेवफ़ा न था

हम ख़ुद भी तर्क-ए-राह-ए-वफ़ा पर हैं मुन्फ़इल
पर क्या करें कि और कोई रास्ता न था

जब से जुदा हुए हैं तबीअ'त उदास है
और लुत्फ़ ये कि तुझ से कोई मुद्दआ' न था