इक बार जो बिछड़े वो दोबारा नहीं मिलता
मिल जाए कोई शख़्स तो सारा नहीं मिलता
उस की भी निकल आती है इज़हार की सूरत
जिस शख़्स को लफ़्ज़ों का सहारा नहीं मिलता
फिर डूबना ये बात बहुत सोच लो पहले
हर लाश को दरिया का किनारा नहीं मिलता
ये सोच के दिल फिर से है आमादा-ए-उल्फ़त
हर बार मोहब्बत में ख़सारा नहीं मिलता
क्यूँ लोग बुलाएँगे हमें बज़्म-ए-सुख़न में
अपना तो किसी से भी सितारा नहीं मिलता
वो शहर भला कैसे लगे अपना जहाँ पर
इक शख़्स भी ढूँडे से हमारा नहीं मिलता
ग़ज़ल
इक बार जो बिछड़े वो दोबारा नहीं मिलता
अख़्तर मालिक