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ईमाँ-नवाज़ गर्दिश-ए-पैमाना हो गई | शाही शायरी
iman-nawaz gardish-e-paimana ho gai

ग़ज़ल

ईमाँ-नवाज़ गर्दिश-ए-पैमाना हो गई

अब्दुल मजीद हैरत

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ईमाँ-नवाज़ गर्दिश-ए-पैमाना हो गई
हम से भी एक लग़्ज़िश-ए-मस्ताना हो गई

कोई तो बात शम्अ' के जलने में थी ज़रूर
जिस पर निसार हस्ती-ए-परवाना हो गई

सद शुक्र आज हो तो गई उन से गुफ़्तुगू
ये और बात है कि हरीफ़ाना हो गई

अल्लाह रे अश्क-बारी-शम-ए-शब-ए-फ़िराक़
जो सुब्ह होते होते इक अफ़्साना हो गई

'हैरत' के ग़म-कदे में ख़ुशी का गुज़र कहाँ
तुम आ गए तो रौनक़-ए-काशाना हो गई