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इधर यार जब मेहरबानी करेगा | शाही शायरी
idhar yar jab mehrbani karega

ग़ज़ल

इधर यार जब मेहरबानी करेगा

नज़ीर अकबराबादी

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इधर यार जब मेहरबानी करेगा
तो अपना भी जी शादमानी करेगा

दया दिल 'नज़ीर' उस को यूँ कह के ऐ जाँ
कहोगे तो ये पासबानी करेगा

पढ़ेगा ये अशआर बैठोगे जब तक
जो लेटोगे अफ़्साना-ख़्वानी करेगा

बिठाओगे दर पर तो होगा ये दरबाँ
लड़ाओगे तो पहलवानी करेगा

इताअत में ख़िदमत में फ़रमाँ-बरी में
ग़रज़ हर तरह जाँ-फ़िशानी करेगा