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इधर उधर के हवालों से मत डराओ मुझे | शाही शायरी
idhar udhar ke hawalon se mat Darao mujhe

ग़ज़ल

इधर उधर के हवालों से मत डराओ मुझे

इरतिज़ा निशात

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इधर उधर के हवालों से मत डराओ मुझे
सड़क पे आओ समुंदर में आज़माओ मुझे

मिरा वजूद अगर रास्ते में हाइल है
तुम अपनी राह निकालो फलाँग जाओ मुझे

सिवाए मेरे नहीं कोई जारेहाना क़दम
मैं इक हक़ीर पियादा सही बढ़ाओ मुझे

इसी में मेरी तुम्हारी नजात मुज़्मर है
कि मैं बनाऊँ तुम्हें और तुम मिटाओ मुझे

गुज़रने वाला हर इक लम्हा मेरा क़ातिल है
ख़ुदा के वास्ते मारो इसे बचाओ मुझे

जमी हुई हैं मिरी लाश पर निगाहें क्यूँ
मैं कोई आख़िरी ख़्वाहिश नहीं दबाओ मुझे

ख़ुशी मनाते हो कहते हो मुझ को ईद 'निशात'
मगर मैं ख़ून की होली भी हूँ जलाओ मुझे