EN اردو
इधर मय-कदा है उधर बुत-कदा है | शाही शायरी
idhar mai-kada hai udhar but-kada hai

ग़ज़ल

इधर मय-कदा है उधर बुत-कदा है

पंकज सरहदी

;

इधर मय-कदा है उधर बुत-कदा है
इधर मेरा साक़ी उधर दिलरुबा है

इधर है मिरी तिश्नगी का मुदावा
उधर मेरे दर्द-ए-जिगर की दवा है

इधर जोश-ए-सहबा उधर जोश-ए-उल्फ़त
इधर इब्तिदा है उधर इंतिहा है

इधर दुख़्तर-ए-रज़ की है काफ़िर जवानी
उधर हुस्न-ए-महबूब-ए-सिद्क़-ओ-सफ़ा है

इधर मय पिला कर गिराने का शेवा
उधर थाम लेने को दस्त-ए-वफ़ा है

इधर जाऊँ या मैं उधर जाऊँ 'पंकज'
इधर भी ख़ुदा है उधर भी ख़ुदा है