इधर बातें छुपाने लग गया है
वो कुछ कुछ दूर जाने लग गया है
अकेले में हँसाने लग गया है
बहुत ही याद आने लग गया है
सुबह दिन शाम रातें जी उठी है
कि वो क़िस्से सुनाने लग गया है
उदासी उस की ख़ंजर सी चुभे है
मुझे कुछ यूँ सताने लग गया है
अटक जाता है जब भी बोलता है
बहाने जो बनाने लग गया है

ग़ज़ल
इधर बातें छुपाने लग गया है
प्रताप सोमवंशी