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हू-ब-हू आप ही की मूरत है | शाही शायरी
hu-ba-hu aap hi ki murat hai

ग़ज़ल

हू-ब-हू आप ही की मूरत है

अकबर हमीदी

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हू-ब-हू आप ही की मूरत है
ज़िंदगी कितनी ख़ूबसूरत है

जिस तरह फूल की गुलिस्ताँ को
ज़िंदगी को मिरी ज़रूरत है

ख़ास मेहमाँ हैं आदम ओ हव्वा
इक नई दुनिया की महूरत है

कहती है कुछ ज़बाँ से कह 'अकबर'
इस तरह काहे मुझ को घूरत है