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हुस्न ने सीखीं ग़रीब-आज़ारियाँ | शाही शायरी
husn ne sikhin gharib-azariyan

ग़ज़ल

हुस्न ने सीखीं ग़रीब-आज़ारियाँ

हफ़ीज़ जालंधरी

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हुस्न ने सीखीं ग़रीब-आज़ारियाँ
इश्क़ की मजबूरियाँ लाचारियाँ

बह गया दिल हसरतों के ख़ून में
ले गईं बीमार को बीमारियाँ

सोच कर ग़म दीजिए ऐसा न हो
आप को करनी पड़ें ग़म-ख़्वारियाँ

दार के क़दमों में भी पहुँची न अक़्ल
इश्क़ ही के सर रहीं सरदारियाँ

इक तरफ़ जिंस-ए-वफ़ा क़ीमत-तबल
इक तरफ़ मैं और मिरी नादारियाँ

होते होते जान दूभर हो गई
बढ़ते बढ़ते बढ़ गईं बे-ज़ारियाँ

तुम ने दुनिया ही बदल डाली मिरी
अब तो रहने दो ये दुनिया-दारियाँ