हुस्न ने मान लिया क़ाबिल-ए-ताज़ीर मुझे
नज़र आई है मोहब्बत की ये तक़्सीर मुझे
क्यूँ न हो बादा-ए-सर-जोश की तौक़ीर मुझे
मिल गई पीर-ए-ख़राबात से तहरीर मुझे
जल्वा-ए-हुस्न के मफ़्हूम पे जब ग़ौर किया
एक धुँदली सी नज़र आई है तस्वीर मुझे
अब मिरी वहशत-ए-रुस्वा का अजब आलम है
कर दिया आप ने वाबस्ता-ए-ज़ंजीर मुझे
बे-तकल्लुफ़ रुख़-ए-ज़ेबा से उठाए वो नक़ाब
हुस्न ख़ुद पाएगा एक पैकर-ए-तस्वीर मुझे
ज़िंदगी इक नए आलम में नज़र आती है
ले चली आज कहाँ गर्दिश-ए-तक़दीर मुझे
खिच गई दिल-कशी-ए-हुस्न मरी नज़रों में
जी बहलने को मिली आप की तस्वीर मुझे
ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ रुख़-ए-अनवर की सताइश को सिवा
कोई मज़मून न मिला क़ाबिल-ए-तहरीर मुझे
हुस्न-ए-दिलकश के तलव्वुन पे नज़र जब पहुँची
न रहा फिर गिला-ए-गर्दिश-ए-तक़दीर मुझे
ग़ज़ल
हुस्न ने मान लिया क़ाबिल-ए-ताज़ीर मुझे
दिल शाहजहाँपुरी