हुस्न को बे-नक़ाब होने दो 
इश्क़ को कामयाब होने दो 
ज़ीस्त ग़र्क़-ए-शराब होने दो 
हर हक़ीक़त को ख़्वाब होने दो 
तूर-ओ-मूसा से मावरा हैं हम 
राज़ का सद्द-ए-बाब होने दो 
देखना है अभी हयात को जश्न 
इक नया इंक़लाब होने दो 
मैं बला-नोश-ओ-बादा-ख़्वार सही 
मेरी हस्ती ख़राब होने दो 
आज की शब तो उन की महफ़िल में 
इश्क़ को बारयाब होने दो 
मुल्तफ़ित कोई हो रहा है 'नज़र' 
लुत्फ़ और बे-हिसाब होने दो
        ग़ज़ल
हुस्न को बे-नक़ाब होने दो
नज़र बर्नी

