हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला
इश्क़ अपने मुजरिमों को पा-ब-जौलाँ ले चला
ख़ून-ए-नाहक़ की हया बोली ज़रा मुँह ढाँक लो
नाज़ जब उन को सर-ए-ख़ाक-ए-शहीदाँ ले चला
ख़ाक-ए-आशिक़ रोकने को दूर तक लिपटी गई
जब समंद-ए-नाज़ को वो गर्म-जौलाँ ले चला
जब चली मक़्तल से क़ातिल की सवारी रात को
आगे आगे मिशअलें ख़ून-ए-शहीदाँ ले चला
आरज़ू-ए-दीद-ए-जानाँ बज़्म में लाई मुझे
बज़्म से मैं आरज़ू-ए-दीद-ए-जानाँ ले चला
ढूँडती थी हर तरफ़ किस को निगाह-ए-वापसीं
आस किस के दीद की बीमार-ए-हिज्राँ ले चला
नाज़-ए-आज़ादी 'हसन' वज्ह-ए-असीरी हो गया
मू-कशाँ दिल को ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-पैमाँ ले चला
ग़ज़ल
हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला
हसन बरेलवी