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हुस्न है मोहब्बत है मौसम-ए-बहाराँ है | शाही शायरी
husn hai mohabbat hai mausam-e-bahaaran hai

ग़ज़ल

हुस्न है मोहब्बत है मौसम-ए-बहाराँ है

ज़िया फ़तेहाबादी

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हुस्न है मोहब्बत है मौसम-ए-बहाराँ है
काएनात रक़्साँ है ज़िंदगी ग़ज़ल-ख़्वाँ है

इशरतों के मुतलाशी ग़म से क्यूँ गुरेज़ाँ है
तीरगी के पर्दे में रौशनी का सामाँ है

गीत हैं जवानी है अब्र है बहारें हैं
मुज़्तरिब इधर मैं हूँ तू उधर परेशाँ है

धूप हो कि बारिश हो तू है मोनिस-ओ-हमदम
मुझ पे ये तिरा एहसाँ ऐ ग़म-ए-फ़रावाँ है

रिंद बुख़्ल-ए-साक़ी पर किस क़दर थे कल बरहम
मय-कदा है आज अपना और तंग दामाँ है

उफ़ दो-रंगी-ए-दुनिया उफ़ तज़ाद का आलम
कुफ़्र के उजाले हैं तीरगी-ए-ईमाँ है

बे-नक़ाब देखा था ख़्वाब में उन्हें इक शब
आज तक निगाहों में ऐ 'ज़िया' चराग़ाँ है