हुस्न-ए-यूसुफ़ किसे कहते हैं ज़ुलेख़ा क्या है
इश्क़ इक रम्ज़ है नादाँ अभी समझा क्या है
फ़लसफ़े इश्क़ के अब कौन किसे समझाए
हर तरफ़ उस की तजल्ली है तो पर्दा क्या है
तू ने देखे तो बहुत होंगे उमडते सागर
मेरी आँखों से कभी पूछ कि दरिया क्या है
यार के जल्वों में ईमान मुकम्मल कर लूँ
मेरी जन्नत है यहीं अर्श पे रक्खा क्या है
'शम्अ'' इतना तो कभी उस की समझ में आए
डूबती कश्ती का साहिल से तक़ाज़ा क्या है
ग़ज़ल
हुस्न-ए-यूसुफ़ किसे कहते हैं ज़ुलेख़ा क्या है
सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ