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हुस्न-ए-नज़्ज़ारा सही जल्वा-दर-आग़ोश सही | शाही शायरी
husn-e-nazzara sahi jalwa-dar-aghosh sahi

ग़ज़ल

हुस्न-ए-नज़्ज़ारा सही जल्वा-दर-आग़ोश सही

मुख़्तार हाशमी

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हुस्न-ए-नज़्ज़ारा सही जल्वा-दर-आग़ोश सही
इश्क़ फिर इश्क़ है बे-ख़ुद सही मदहोश सही

कुछ नुक़ूश ऐसे भी हैं जो नहीं मिटते दिल से
ज़िंदगी इश्क़ की इक ख़्वाब-ए-फ़रामोश सही

कुछ न कुछ सोचना पड़ता है सुकूँ की ख़ातिर
उन की महफ़िल न सही मौत की आग़ोश सही

आइना इश्क़-ओ-मोहब्बत का ब-हर-हाल है दिल
शोर-ए-नग़्मा न सही नाला-ए-ख़ामोश सही

इर्तिबात-ए-नज़र-ओ-दिल न मिटा है न मिटे
मैं तो रू-पोश नहीं उन से वो रू-पोश सही