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हुस्न और बरसर-ए-पैकार ख़ुदा ख़ैर करे | शाही शायरी
husn aur barsar-e-paikar KHuda KHair kare

ग़ज़ल

हुस्न और बरसर-ए-पैकार ख़ुदा ख़ैर करे

रियाज़त अली शाइक

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हुस्न और बरसर-ए-पैकार ख़ुदा ख़ैर करे
आप के हाथ में तलवार ख़ुदा ख़ैर करे

मुझ को डर है कि न बन जाए क़यादत का सबब
आप के इश्क़ का इक़रार किया है हम ने

आप के इश्क़ का इक़रार किया है हम ने
हम हैं और मरहला-ए-दार ख़ुदा ख़ैर करे

आए थे हम तिरे दीदार की हसरत ले कर
अब हैं कुछ और ही आसार ख़ुदा ख़ैर करे

वो जो बदनाम रहे राहज़नी में बरसों
हैं वही क़ाफ़िला-सालार ख़ुदा ख़ैर करे

कोई दुनिया में नहीं तेरे सिवा ऐ 'शाएक'
जिंस-ए-उल्फ़त का ख़रीदार ख़ुदा ख़ैर करे