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हुस्न अल्फ़ाज़ के पैकर में अगर आ सकता | शाही शायरी
husn alfaz ke paikar mein agar aa sakta

ग़ज़ल

हुस्न अल्फ़ाज़ के पैकर में अगर आ सकता

फ़हीम शनास काज़मी

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हुस्न अल्फ़ाज़ के पैकर में अगर आ सकता
कैसा होता है ख़ुदा तुम को मैं दिखला सकता

इस सफ़र पे हूँ कि हलकान हुआ जाता हूँ
और कहाँ जाना है ये भी नहीं बतला सकता

हारना भी है यक़ीनी पे मिरी फ़ितरत है
एक ही चाल हमेशा नहीं दोहरा सकता

ज़िंदगी अब तू मुझे और खिलौने ला दे
ऐसे ख़्वाबों से तो मैं दिल नहीं बहला सकता

मैं भी तक़दीर के लिक्खे पे यक़ीं ले आता
वक़्त इक बार जो उस से मुझे मिलवा सकता