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हुस्न अगर आश्कार हो जाए | शाही शायरी
husn agar aashkar ho jae

ग़ज़ल

हुस्न अगर आश्कार हो जाए

जलालुद्दीन अकबर

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हुस्न अगर आश्कार हो जाए
फ़ित्ना-ए-रोज़गार हो जाए

दिल को इस तरह देखने वाले
दिल अगर बे-क़रार हो जाए

शोख़ी-ए-यार का तक़ाज़ा है
शौक़ बे-इख़्तियार हो जाए

कोई शिकवा रहे न 'अकबर' को
तू अगर एक बार हो जाए