हुस्न अगर आश्कार हो जाए
फ़ित्ना-ए-रोज़गार हो जाए
दिल को इस तरह देखने वाले
दिल अगर बे-क़रार हो जाए
शोख़ी-ए-यार का तक़ाज़ा है
शौक़ बे-इख़्तियार हो जाए
कोई शिकवा रहे न 'अकबर' को
तू अगर एक बार हो जाए
ग़ज़ल
हुस्न अगर आश्कार हो जाए
जलालुद्दीन अकबर