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हुश्यार हैं तो हम को बहक जाना चाहिए | शाही शायरी
hushyar hain to hum ko bahak jaana chahiye

ग़ज़ल

हुश्यार हैं तो हम को बहक जाना चाहिए

इरफ़ान सिद्दीक़ी

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हुश्यार हैं तो हम को बहक जाना चाहिए
बे-सम्त रास्ता है भटक जाना चाहिए

देखो कहीं पियाले में कोई कमी न हो
लबरेज़ हो चुका तो छलक जाना चाहिए

हर्फ़-ए-रजज़ से यूँ नहीं होता कोई कमाल
बातिन तक इस सदा की धमक जाना चाहिए

गिरता नहीं मसाफ़ में बिस्मिल किसी तरह
अब दस्त-ए-नेज़ा-कार को थक जाना चाहिए

तय हो चुके सब आबला-पाई के मरहले
अब ये ज़मीं गुलाबों से ढक जाना चाहिए

शायद पस-ए-ग़ुबार तमाशा दिखाई दे
इस रह-गुज़र पे दूर तलक जाना चाहिए