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हुसैन ही था जो प्यासा उठा फ़ुरात से वो | शाही शायरी
husain hi tha jo pyasa uTha furaat se wo

ग़ज़ल

हुसैन ही था जो प्यासा उठा फ़ुरात से वो

मुसव्विर सब्ज़वारी

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हुसैन ही था जो प्यासा उठा फ़ुरात से वो
लहूलुहान समुंदर था अपनी ज़ात से वो

फ़सील-ए-शब की कमीं-गाहें उस पे सब रौशन
न जाने गुज़रेगा कब जा-ए-वारदात से वो

किया न तर्क-ए-मरासिम पे एहतिजाज उस ने
कि जैसे गुज़रे किसी मंज़िल-ए-नजात से वो

परिंदे लौट रहे हैं खुले बसेरों में
गया है घर से भी लड़ कर गुज़िश्ता रात से वो

न जाने क्या हैं ये दीमक-ज़दा सी तहरीरें
डरा डरा सा है बोसीदा काग़ज़ात से वो