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हुरूफ़ ख़ाली सदफ़ और निसाब ज़ख़्मों के | शाही शायरी
huruf Khaali sadaf aur nisab zaKHmon ke

ग़ज़ल

हुरूफ़ ख़ाली सदफ़ और निसाब ज़ख़्मों के

अज़हर नैयर

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हुरूफ़ ख़ाली सदफ़ और निसाब ज़ख़्मों के
वरक़ वरक़ पे हैं तहरीर ख़्वाब ज़ख़्मों के

सवाल फूल से नाज़ुक जवाब ज़ख़्मों के
बहुत अजीब हैं ये इंक़लाब ज़ख़्मों के

ग़रीब-ए-शहर को कुछ और ग़म-ज़दा करने
अमीर-ए-शहर ने भेजे ख़िताब ज़ख़्मों के

सुरों पे तान के रखना सवाब की चादर
उतरने वाले हैं अब के अज़ाब ज़ख़्मों के

वो एक शख़्स कि जो फ़त्ह का समुंदर था
उसी के हिस्से में आए सराब ज़ख़्मों के

खिलेंगे नख़्ल-ए-तमन्ना की टहनी टहनी पर
लहू की सुर्ख़ियाँ ले कर गुलाब ज़ख़्मों के

सजा के रक्खूँगा मेहराब-ए-दिल में ऐ 'नय्यर'
बहुत अज़ीज़ हैं मुझ को गुलाब ज़ख़्मों के