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हुजूम शोला में था हल्क़ा-ए-शरर में था | शाही शायरी
hujum shoala mein tha halqa-e-sharar mein tha

ग़ज़ल

हुजूम शोला में था हल्क़ा-ए-शरर में था

अनवर सिद्दीक़ी

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हुजूम शोला में था हल्क़ा-ए-शरर में था
कब अपना ख़्वाब में कोई साया-ए-शजर मैं था

मैं आज फिर तुझे क्या देख पाऊँगा दुनिया
वो शख़्स देर तलक आज फिर नज़र में था

सियह फ़ज़ाओं में ऊँची उड़ान से पहले
किरन किरन का उजाला सा बाल ओ पर में था

ख़ुनुक फ़ज़ाओं में उस दश्त-ए-ग़म के आने तक
हमारे साथ कोई और भी सफ़र में था

शरर शरर थे जो लम्हे हसीन लगते थे
जो लुत्फ़ था भी तो कुछ क़ुर्ब-ए-मुख़्तसर में था

बिखर के टूट गए हम बिखरती दुनिया में
ख़ुद-आफ़रीनी का सौदा हमारे सर में था