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हुजूम-ए-यास में माँ की दुआ मिलती रही है | शाही शायरी
hujum-e-yas mein man ki dua milti rahi hai

ग़ज़ल

हुजूम-ए-यास में माँ की दुआ मिलती रही है

सफ़दर सलीम सियाल

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हुजूम-ए-यास में माँ की दुआ मिलती रही है
ये दौलत ज़िंदगी में बारहा मिलती रही है

किसी का कुछ बिगाड़ा ही नहीं हम ने ज़माने में
हमें तो ख़्वाब लिखने की सज़ा मिलती रही है

तिरे दर तक पहुँचने की कभी नौबत नहीं आई
कि रस्ते में हमें अपनी अना मिलती रही है

बचा के लाख रक्खा तू ने अपने दामन-ए-दिल को
मगर ज़ख़्मों को फिर भी कुछ हवा मिलती रही है

अगर हम ग़ौर से देखें तो अब महसूस होता है
कि वो हम से यूँही बे-मुद्दआ मिलती रही है

कहीं भी हाथ फैलाए नहीं तेरे सिवा हम ने
हमें हर मोड़ पर तेरी अता मिलती रही है