EN اردو
हुजूम-ए-सय्यार्गां में रौशन दिया उसी का | शाही शायरी
hujum-e-sayyargan mein raushan diya usi ka

ग़ज़ल

हुजूम-ए-सय्यार्गां में रौशन दिया उसी का

कबीर अजमल

;

हुजूम-ए-सय्यार्गां में रौशन दिया उसी का
फ़सील-ए-शब पर भी गुल खिलाए हुआ उसी का

उसी की शह पर तरफ़ तरफ़ रक़्स-ए-मौज-ए-गिर्या
तमाम गिर्दाब-ए-ख़ूँ पे पहरा भी था उसी का

उसी का लम्स-ए-गुदाज़ रौशन करे शब-ए-ग़म
हवा-ए-मस्त-ए-विसाल का सिलसिला उसी का

उसी के ग़म में धुआँ धुआँ चश्म-ए-रंग-ओ-नग़्मा
सो अक्स-ज़ार-ए-ख़याल भी मोजज़ा उसी का

उसी के होंटों के फूल बाब-ए-क़ुबूल चूमें
सो हम उठा लाएँ अब के हर्फ़-ए-दुआ उसी का

उसी से 'अजमल' तमाम फ़स्ल-ए-ग़ुबार-ए-सहरा
उदास आँखों में फिर भी रौशन दिया उसी का