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हुजूम-ए-गर्दिश-ए-दौराँ है क्या ग़ज़ल कहिए | शाही शायरी
hujum-e-gardish-e-dauran hai kya ghazal kahiye

ग़ज़ल

हुजूम-ए-गर्दिश-ए-दौराँ है क्या ग़ज़ल कहिए

राज़ इलाहाबादी

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हुजूम-ए-गर्दिश-ए-दौराँ है क्या ग़ज़ल कहिए
दिल-ओ-दिमाग़ परेशाँ है क्या ग़ज़ल कहिए

ये किस ने आग लगा दी गुलों के दामन में
धुआँ धुआँ सा गुलिस्ताँ है क्या ग़ज़ल कहिए

जलाए जाते हैं अब घर में आँसुओं के चराग़
अजीब जश्न-ए-चराग़ाँ है क्या ग़ज़ल कहिए

ये सीटियों की सदा रात का ये सन्नाटा
सुकूत-ए-शहर-ए-ख़मोशाँ है क्या ग़ज़ल कहिए

घिरा हुआ है चमन नरग़ा-ए-सियासत में
बहार शो'ला-ब-दामाँ है क्या ग़ज़ल कहिए

जो 'राज़' मुल्क में अम्न-ओ-अमाँ की बात करे
अब उस के वास्ते ज़िंदाँ है क्या ग़ज़ल कहिए