हुजूम-ए-ऐश-ओ-तरब में भी है बशर तन्हा
नफ़स नफ़स है मुहाजिर नज़र नज़र तन्हा
ये मेरा अक्स है आईने में कि दुश्मन है
उदास तिश्ना-सितम दीदा-ए-बे-ख़बर तन्हा
ये क़त्ल-गाह भी है बाल-पन का आँगन भी
भटक रही है जहाँ चश्म-ए-मो'तबर तन्हा
बुरा न मान मिरे हम-सफ़र ख़ुदा के लिए
चलूँगा मैं भी इसी राह पर मगर तन्हा
न जाने भीगी हैं पलकें ये क्यूँ दम-ए-रुख़्सत
कि घर में भी तो रहा हूँ मैं उम्र-भर तन्हा
न बज़्म-ए-ख़लवतियाँ है न हश्र-गाह-ए-अवाम
अँधेरी रात करूँ किस तरह बसर तन्हा
किसी ग़ज़ल का कोई शे'र गुनगुनाते चलें
तवील राहें वफ़ा की हैं और सफ़र तन्हा
निसार कर दूँ ये पलकों पे काँपती यादें
तिरा ख़याल जो आए दम-ए-सहर तन्हा
जिधर भी जाओ कोई राह रोक लेता है
वफ़ा ने छोड़ी नहीं एक भी डगर तन्हा
बरत लो यारो बरतने की चीज़ है ये हयात
हो लाख तरसी हुई तल्ख़-ए-मुख़्तसर तन्हा
उमीद कितनी ही मायूसियों की मशअ'ल है
हो रहगुज़ार में जैसे कोई शजर तन्हा
जिधर से गुज़रे थे मा'सूम हसरतों के जुलूस
सुना कि आज है 'ज़ैदी' वही डगर तन्हा
ग़ज़ल
हुजूम-ए-ऐश-ओ-तरब में भी है बशर तन्हा
अली जव्वाद ज़ैदी