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हुई तो जा दिल में उस सनम की नमाज़ में सर झुका झुका कर | शाही शायरी
hui to ja dil mein us sanam ki namaz mein sar jhuka jhuka kar

ग़ज़ल

हुई तो जा दिल में उस सनम की नमाज़ में सर झुका झुका कर

शाद लखनवी

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हुई तो जा दिल में उस सनम की नमाज़ में सर झुका झुका कर
हरम से बुत-ख़ाने तक तो पहुँचा ख़ुदा ख़ुदा कर ख़ुदा ख़ुदा कर

लहद में क्या ज़िक्र रौशनी का सर-ए-लहद भी जो रहम खा कर
जला किया जब चराग़ कोई हवा ने ठंडा किया बुझा कर

निशान-ए-बरबाद-गान-ए-आलम जो पूछे सहरा में हम ने जा कर
सबा से उड़ उड़ के गर्द बैठी बगूले उठ्ठे हवा में आ कर

जो चश्म-ए-अंजाम-ए-बीं से देखा बहार दो दिन है फिर ख़िज़ाँ है
मआल-ए-गुलशन पे रोई शबनम हँसे गुल-ए-तर जो खिल-खिला कर

बुतों की पुर-आब अँखड़ियों में खुला ये देखा जो पुतलियों को
ये वो हैं हिन्दू धरम जमन से फिरे जो गंगा चले नहा कर

ख़याल-ए-हज्ज-ए-हरम को छोड़ा सुना जो शह-ए-रग से है क़रीं-तर
तवाफ़-ए-दिल ही किया किए हम गए न काबे को फेर खा कर

ज़मीं में ऐ 'शाद' मर गए पर फ़लक दबाए तो क्या गिला है
मियान-ए-तुर्बत हमारे पहलू हमें दबाते हैं मुर्दा पा कर