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हुई मुद्दतें ऐ दिल-ए-हज़ीं न पयाम है न सलाम है | शाही शायरी
hui muddaten ai dil-e-hazin na payam hai na salam hai

ग़ज़ल

हुई मुद्दतें ऐ दिल-ए-हज़ीं न पयाम है न सलाम है

बशीरुद्दीन राज़

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हुई मुद्दतें ऐ दिल-ए-हज़ीं न पयाम है न सलाम है
कि उसी को कहते हैं दोस्ती कि उसी का दोस्ती नाम है

कभी जाए बाद-ए-सबा उधर तो ये कहना उस की भी है ख़बर
ब-जुज़ एक ग़म के सिवा तिरे जिसे खाना पीना हराम है

तू सुकून-ओ-सब्र मिटाए जा ग़म-ए-इश्क़ मुझ को रुलाए जा
हो तड़प तड़प के सहर मुझे यही दर्द-ए-दिल तिरा काम है

मैं दिखाऊँ किस को ये हाल-ए-दिल मैं सुनाऊँ किस को ये हाल-ए-दिल
कहीं मुझ से ख़ाना-ब-दोश को न क़रार है न क़याम है

मुझे दर्द तू ने अता किया मिरे मेहरबाँ तिरा शुक्रिया
बना दर्द-ए-दिल तिरा ज़िंदगी तिरे दर्द-ए-दिल से ही काम है

न क़रार आए किसी तरह मिरे दर्द-ए-दिल तू तरक़्क़ी कर
शब-ए-ग़म तड़पते ही हो सहर शब-ए-ग़म तड़पने से काम है

ये कैसी उस की है दोस्ती ये बता तो मुझ को दिल-ए-हज़ीं
नहीं जिस को दूर का वास्ता उसे दूर ही से सलाम है

वो नज़र बचा के चला गया मैं ये 'राज़' कहता ही रह गया
ज़रा जाने वाले ये बात सुन ये बता तो क्या तिरा नाम है