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हुई दिल टूटने पर इस तरह दिल से फ़ुग़ाँ पैदा | शाही शायरी
hui dil TuTne par is tarah dil se fughan paida

ग़ज़ल

हुई दिल टूटने पर इस तरह दिल से फ़ुग़ाँ पैदा

फ़ाज़िल अंसारी

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हुई दिल टूटने पर इस तरह दिल से फ़ुग़ाँ पैदा
कि जैसे शम्अ' के बुझने से होता है धुआँ पैदा

रहा साबित-क़दम यूँ ही अगर अज़्म-ए-सफ़र अपना
करेगी ख़ुद रह-ए-दुश्वार ही आसानियाँ पैदा

हर इक ता'मीर ख़ुद अपनी तबाही साथ लाती है
न गिरती बर्क़ गर होती न शाख़-ए-आशियाँ पैदा

मिरी ख़्वाहिश कि इक सज्दा मिटा दे नाम-ए-पेशानी
तिरी ख़्वाहिश हो पेशानी पे सज्दों का निशाँ पैदा

वो जिन की मौत पर रोते हैं बरसों जाम-ओ-पैमाना
अब ऐसे बादा-कश होते हैं ऐ साक़ी कहाँ पैदा

ज़रूरत क्या करें हम जुस्तजू-ए-आस्ताँ ऐ दिल
सलामत ज़ौक़-ए-सज्दा आप होगा आस्ताँ पैदा

नज़र में जिन की रंगीनी तबीअ'त में है रानाई
वो कर लेते हैं 'फ़ाज़िल' दश्त में भी गुलिस्ताँ पैदा