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हुई दस्तक कोई आया नहीं कोई नहीं है | शाही शायरी
hui dastak koi aaya nahin koi nahin hai

ग़ज़ल

हुई दस्तक कोई आया नहीं कोई नहीं है

अहसन अली ख़ाँ

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हुई दस्तक कोई आया नहीं कोई नहीं है
हमें अब पूछने वाला कहीं कोई नहीं है

बहुत आबाद हैं ये बे-दर-ओ-दीवार से घर
महल ऐसे भी हैं जिन में कमीं कोई नहीं है

झिजकते हैं इशारों से भी दिल की बात करते
कि शीशा-घर में राज़ों का अमीं कोई नहीं है

अब इक अंधे कुएँ में गिरते जाना ज़िंदगी है
अब अपने पाँव के नीचे ज़मीं कोई नहीं है

ज़रा सुन तो कि अब मज़लूम ना-उम्मीद हो कर
ये कहते हैं सर-ए-अर्श-ए-बरीं कोई नहीं है