हुए थे भाग के पर्दे में तुम निहाँ क्यूँकर 
वो पहली वस्ल की शब शोख़ियाँ थीं हाँ क्यूँकर 
फ़लक को देख के कहता हूँ जोश-ए-वहशत में 
इलाही ठहरे मिरी आह का धुआँ क्यूँकर 
तुम्हारे कूचे में उस ना-तवाँ का था क्या काम 
मुझे भी सोच है आया हूँ मैं यहाँ क्यूँकर 
ज़बाँ है लज़्ज़त-ए-बोसा से बंद ऐ ज़ालिम 
मज़ा भरा है जो दिल में करूँ बयाँ क्यूँकर 
शब-ए-विसाल से शिकवे हज़ारों हैं जी में 
इलाही बंद रहेगी मिरी ज़बाँ क्यूँकर
        ग़ज़ल
हुए थे भाग के पर्दे में तुम निहाँ क्यूँकर
मीर तस्कीन देहलवी

