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हुए थे भाग के पर्दे में तुम निहाँ क्यूँकर | शाही शायरी
hue the bhag ke parde mein tum nihan kyunkar

ग़ज़ल

हुए थे भाग के पर्दे में तुम निहाँ क्यूँकर

मीर तस्कीन देहलवी

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हुए थे भाग के पर्दे में तुम निहाँ क्यूँकर
वो पहली वस्ल की शब शोख़ियाँ थीं हाँ क्यूँकर

फ़लक को देख के कहता हूँ जोश-ए-वहशत में
इलाही ठहरे मिरी आह का धुआँ क्यूँकर

तुम्हारे कूचे में उस ना-तवाँ का था क्या काम
मुझे भी सोच है आया हूँ मैं यहाँ क्यूँकर

ज़बाँ है लज़्ज़त-ए-बोसा से बंद ऐ ज़ालिम
मज़ा भरा है जो दिल में करूँ बयाँ क्यूँकर

शब-ए-विसाल से शिकवे हज़ारों हैं जी में
इलाही बंद रहेगी मिरी ज़बाँ क्यूँकर