हुए मुझ से जिस घड़ी तुम जुदा तुम्हें याद हो कि न याद हो
मिरी हर नज़र थी इक इल्तिजा तुम्हें याद हो कि न याद हो
वो तुम्हारा कहना कि जाएँगे अगर आ सके तो फिर आएँगे
उसे इक ज़माना गुज़र गया तुम्हें याद हो कि न याद हो
मिरी बे-क़रारियाँ देख कर मुझे तुम ने दी थीं तसल्लियाँ
मिरा चेहरा फिर भी उदास था तुम्हें याद हो कि न याद हो
मिरी बेबसी ने ज़बान तक जिसे ला के तुम को रुला दिया
मिरे टूटे साज़ की वो सदा तुम्हें याद हो कि न याद हो
तुम्हें चंद क़तरा-ए-अश्क भी किए पेश जिस के जवाब में
वो सलाम नीची निगाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो
मिरे शाने पर यही ज़ुल्फ़ थी जो है आज मुझ से खिंची खिंची
मिरे हाथ में यही हाथ था तुम्हें याद हो कि न याद हो
कभी हाथ में जो शराब ली वहीं तुम ने छीन के फेंक दी
मुझे याद है मिरे पारसा तुम्हें याद हो कि न याद हो
कहीं तुम को जाना हुआ अगर न गए बग़ैर 'नज़ीर' के
वो ज़माना अपने 'नज़ीर' का तुम्हें याद हो कि न याद हो
ग़ज़ल
हुए मुझ से जिस घड़ी तुम जुदा तुम्हें याद हो कि न याद हो
नज़ीर बनारसी