EN اردو
हुए जनाब में अब तक न तेरे हम गुस्ताख़ | शाही शायरी
hue janab mein ab tak na tere hum gustaKH

ग़ज़ल

हुए जनाब में अब तक न तेरे हम गुस्ताख़

मह लक़ा चंदा

;

हुए जनाब में अब तक न तेरे हम गुस्ताख़
ख़ुदा के वास्ते हम से न हो सनम गुस्ताख़

छुपाया राज़-ए-मोहब्बत को दिल में पर हैहात
करे है नाम मिरा बद ये चश्म-ए-नम गुस्ताख़

जो आवे जी में सो कह ले मैं हूँ वो ऐ प्यारे
रहूँ हज़ार हुज़ूरी में पर हूँ कम गुस्ताख़

कहा गले से लगा ले तू इल्तिफ़ात नहीं
कहे है तिस पे मुझे क्यूँ तू दम-ब-दम गुस्ताख़

यही उम्मीद है 'चंदा' को ख़ूब-रूयों में
रखे हमेशा तेरा या अली करम गुस्ताख़