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हुआ नहीं है अभी मुन्हरिफ़ ज़बान से वो | शाही शायरी
hua nahin hai abhi munharif zaban se wo

ग़ज़ल

हुआ नहीं है अभी मुन्हरिफ़ ज़बान से वो

सुल्तान सुकून

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हुआ नहीं है अभी मुन्हरिफ़ ज़बान से वो
सितारे तोड़ के लाएगा आसमान से वो

न हम को पार उतारा न आप ही उतरा
लिपट के बैठा है पतवार ओ बादबान से वो

हमारी ख़ैर है आदी हैं धूप सहने के हम
हुआ है आप भी महरूम साएबान से वो

तमाम बज़्म पे छाया हुआ है सन्नाटा
उठा है शख़्स कोई अपने दरमियान से वो

अभी तो रिफ़अतें क्या क्या थीं मुंतज़िर उस की
अभी पलट के भी आया न था उड़ान से वो

हज़ार मैला किया दिल को उस की जानिब से
किसी भी तौर उतरता नहीं है ध्यान से वो

अब उस की याद अब उस का मलाल कैसा है
निकल गया जो परे सरहद-ए-ग़ुमान से वो

वो जिस 'सुकून' का अब आप पूछने आए
चला गया है कहीं उठ के इस मकान से वो